गाँव के भूत भी
शहरों की तरफ भाग रहे हैं
आशियाना बदल रहे हैं
अब पेड़ नहीं,
शहर का ऊँचा टावर
इनका नया ठिकाना है,
विशालकाय पेड़ों के कटने पर
कितना तो रोये थे ये!
इनके जाने से
गाँव वीरान हो गया,
अब गाँव के बचे-खुचे पीपल और बरगद
कोई भ्रम नहीं पैदा करते,
ना ही कोई डर...
बर्बाद हुई फसलों को देखकर
किसान का लड़का
गुस्से में
भाग रहा है रेलवे स्टेशन,
दिल्ली, बंबई, कलकत्ता के टिकेट खरीदते ही
वह भूल जा रहा है
गाँव की पगडंडी
उसका सोचना सही भी है
कि सिवाय कर्ज और लाचारी के
रखा ही क्या है गाँव में?
जैसे गिद्ध एकाएक गायब हुए थे
ठीक वैसे ही
भूत, किसान, बूढ़, जवान
सब छोड़ते जा रहे हैं, 'गाँव'...!
गिद्ध सच में दूरदर्शी थे
जो एक दशक पहले ही
देख लिए थे, जन्नत की हकीकत...
फिर सपरिवार
छोड़े थे घर-बार...!